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Friday, 20 May 2016

👉🏿☆ Badmazhab Deen-e-Islam Se Aisa Nikal Jata Hai ….👇🏿

👉🏿☆  Badmazhab Deen-e-Islam Se Aisa Nikal Jata Hai ….👇🏿


💚» Mahfum-e-Hadees: Hazrate Huzaifa (RaziAllahu Anhu) Se Riwayat Hai Ki,
Rasool-e-Akram (Sallalahu Alaihi Wasallam) Ne Irshad Farmaya Ki –
“Khuda-e-Ta’ala Kisi Badmazhab Ka Na Roza Qubool Karta Hai,
Na Namaz, Na Zakat, Na Hajj, Na Umrah, Na Jihaad Aur Na Koi Nafl, Na Farz,
Badmazhab Deen-e-Islam Se Aisa Nikal Jata Hai Jaise Ki Gunhe Hua Aatey Se Baal Nikal Jata Hai”.
(Ibn-e-Maajah)💚

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(बदमज़हब और मुरतद कौन,,?)

बद मज़हब :- मज़हब में रहते हुए मज़हब में बद ग़ुमानी बद अक़ीदगी फैलाने वाला

हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि सरकारे अक़दस सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फरमाया *"आख़िरी ज़माना में कुछ लोग'* फरेब देने वाले और झूठ बोलने वाले होंगे वह तुम्हारे सामने ऐसी बातें लायेंगे जिन को न तुम ने कभी सुना होगा न तुम्हारे बाप दादा ने,,तो ऐसे लोग से बचों और उन्हें अपने करीब न आने दो ताकि वह तुम्हें गुमराह न कर दें और न फ़ितना में डालें,,

(मुस्लिम--मिश्कात--सफाह--28)


बद मजहब और हदीसे

वह मुसलमान जो बद मज़हब हैं उसके बारे में रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का हुक्म जानने के लिए इन हदीसों को पढ़े,,

(1) हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि सरवरे काइनात सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फरमाया कि जब तुम किसी बदमज़हब को देखों तो उसके सामने गुस्सा जाहिर करों इस लिए कि खुदाए तआला हर बद मज़हब को दुश्मन रखता है,,

(इब्ने असाकिर)

(2) हज़रत हुज़ैफा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकदस सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने इरशाद फरमाया कि खुदाए तआला किसी बदमज़हब का न रोज़ह क़बूल करता है न नमाज़ न ज़कात न हज न उमराह न जिहाद और न कोई नफ्ल न फर्ज़ बदमज़हब दीने इस्लाम से ऐसा निकल जाता हैं जैसे कि गूँधे हुए आटे से बाल निकल जाता है,,,

(इब्ने माजा)


(3) हज़रत अबू उमामह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि सरकारे अक़दस सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फरमाया कि बदमज़हब दोज़ख़ वालों के कुत्ते हैं,,,

(दार कुतनी)


(4) हज़रत इब्राहीम इब्ने मैसरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फरमाया जिसने किसी बदमज़हब की इज्ज़त की तो उसने इस्लामके ढाने पर मदद की,,,

(मिश्कात शरीफ)

बदमज़हब की इज्ज़त करने से इस्लाम के ढाने पर मदद कैसे हो जाएगी इस सुवाल का जवाब देते हुए हज़रत शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी बुख़ारी अलैहिर्रहमतु वर्रिज़वान तहरीर फरमाते है कि बदमज़हब की इज्ज़त करने में सुन्नत की तौहीन और उसकी बेइज्ज़ती है और सुन्नत की तौहीन इस्लाम की बुनियाद ढाने तक पहुँचा देती है,,

(अशेअतुल्लमआत जिल्द-1--सफाह--147)

(5) हज़रत अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत हैं कि रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने हुक्म फरमाया बदमज़हब अगर बीमार पड़े तो उनको देखने न जाओ,, अगर मरजायें तो उसके जनाज़ह में शरीक न हो उनसे भेंट हो तो उनसे सलाम न करों उनके पास न बैठो उनके साथ पानी न पियो उनके साथ खाना न खाओ उनके साथ शादी विवाह न करों उनके जनाज़ह की नमाज़ न पढ़ों,,,

नोट-- यह हदीस मुस्लिम,,अबूदाऊद,,इब्नेमाजा,,उकैली,,और इब्ने हब्बान की रिवायतों का मज़मूआ हैं,,,

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