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Saturday, 21 May 2016

✦ Mafhum-e-Hadith: Wuzu karke 2 rakat nawafil padhne se pichle sare gunah bakhs diye jate hain ------------

✦ Mafhum-e-Hadith: Wuzu karke 2 rakat nawafil padhne se pichle sare gunah bakhs diye jate hain
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Uthman bin Affan Radi Allahu Anhu ne wuzu ka pani mangwaya aur wuzu kiya to ( Bismillah parh kar) pahle dono haatho ko (kalaii tak) teen baar dhoya phir
( teen baar) kulli ki aur naak mein pani daala aur uske baad teen baar munh dhoya aur phir dahina haath kohni tak teen baar dhoya aur uske baad bahina haath kohni tak teen baar dhoya , phir sir ka masa kiya  aur phir dahina paanw dhoya teen baar aur phir bahina paanw dhoya teen baar aur uske baad kaha ki maine Rasool-Allah Sallallahu Alaihi wasallam ko dekha ki aapne  isee tarah wuzu kiya jaisa maine abhi kiya aur phir Aap Sallallahu alaihi wasallam ne is tarah wuzu karne ke baad farmaya tha ki jo shaksh mere wuzu ki tarah wuzu kare phir 2 rakat (nawafil) khade hokar padhe aur kisi khayal mein garq na ho ( yani faltu khayal dil mein na laye) to uske pichle sare gunah bakhs diye jayenge
Ibn Shihab ne kaha  ki hamare ulma kahte hain ye wuzu sab sare wuzu mein pura hai jo namaz ke liye kiya jaye
Sahih Muslim, Jild 1, 538

✦ Note: wuzu karte waqt gardan ka masa kisi sahi hadith se sabit nahi hai
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✦ उस्मान बिन अफ्फान रदी अल्लाहू अन्हु ने वज़ु का पानी मँगवाया और वज़ु किया तो ( बिस्मिल्लाह पढ़  कर) पहले दोनो हाथों को (कलाई  तक) तीन बार धोया फिर
( तीन  बार) कुल्ली की और नाक में पानी डाला और उसके बाद तीन बार मुँह धोया और फिर दाहिना हाथ कोहनी तक तीन बार धोया और उसके बाद बायाँ हाथ कोहनी तक तीन  बार धोया , फिर सिर का मसा किया  और फिर दाहिना पाँव (टखनों तक) धोया तीन  बार और फिर बायाँ पाँव धोया तीन  बार और उसके बाद कहा की मैने रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम को देखा की आपने  इसी तरह वज़ु किया जैसा मैने अभी किया और फिर आप सललल्लाहू अलैही वसल्लम  ने इस तरह वज़ु करने के बाद फरमाया था की जो शख्स मेरे वज़ु की तरह वज़ु करे फिर 2 रकात (नवाफिल) खड़े होकर पढ़े और किसी ख़याल में गर्क़ ना हो ( यानि दिल में फालतू ख्याल न लाये) तो उसके पिछले सारे गुनाह बखस दिए जाएँगे  इब्न शिहाब ने कहा  की हमारे उलमा कहते हैं ये वज़ु  सारे वज़ु में पूरा है जो नमाज़ के लिए किया जाए
सही मुस्लिम, जिल्द 1, 538

✦ नोट : वुज़ू करते वक़्त गर्दन का मसा किसी भी सही हदीस से साबित नहीं है

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*🌹बहोत ही अहम जानकारी🌹*

सवाल- कौनसी नमाज़ किस नबी (अलैहिस्सलाम) ने सबसे पहले पढ़ी?

*जवाब- सबसे पहले फज्र की नमाज़ हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने पढी,जुहर की नमाज़ हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने पढ़ी,असर की नमाज़ हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने पढ़ी, मग़रिब की नमाज़ हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम ने पढ़ी, इशा की नमाज़ हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम ने पढ़ी।*

📔(सीरत हलबी जिल्द 1 सफ़्हा 458
📔फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 208)

सवाल- वही नाज़िल होने के बाद हुज़ूरे अनवर सल्लल्लाहु- तआला-अलैह-वसल्लम पहली नमाज़ किस दिन पढ़ी?

*जवाब- पीर के दिन अव्वल हिस्से में पढ़ी।*

📔(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 241
📔फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 215)

सवाल- इस उम्मत में सबसे पहले नमाज़ किसने पढ़ी?

*जवाब- हज़रत ख़दीजतुल कुबरा रदियल्लाहु तआला अन्हो ने पढ़ी फिर अली मुश्किल कुशा रदियल्लाहु तआला अन ने।*

📔(ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 241)

सवाल- पाँचों वक़्त की नमाज़ फ़र्ज़ होने से पहले भी हुजूर अकरम सल्लल्लाहु-तआला-अलैह-वसल्लम और सहाबए किराम नमाज़ पढ़ते थे?

*जवाब- हाँ मेराज से पहले भी हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम और सहाबए किराम नमाज़े पढ़ते थे रात की नमाज़ की फ़रज़ियत तो खुद सुरऐ मुज़म्मिल से साबित है और उसके सिवा वक़्तों में भी नमाज़े पढ़ना आया है आम अर्जी कि फ़र्ज़ हो या नफ़ल हदीस शरीफ में है कि नमाज़े पंजगाना की फ़रज़ियत से पहले मुसलमान चाश्त और असर पढ़ा करते थे*

📔(ज़रक़ानी जिल्द 2 सफ़्हा 215
📔फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 213)

सवाल- यह नमाज़ किस तरह अदा फ़रमाते थे क्या उनमें भी शराइत व अरकान का इन्तेजाम फ़रमाते थे?

*जवाब- हाँ उनमें भी शराइत व अरकान को जरूरी अदा करते थे अलबत्ता रूकूअ में इख्तेलाफ है।*

📔(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 215से216)

सवाल- क्या यह पाँच वक़्त की नमाज़ इखटठा किसी और नबी पर भी फ़र्ज़ हुई?

*जवाब- नहीं यह हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम और आपकी उम्मत के साथ ख़ास है।*

📔(ताहतावी सफ़्हा 98)

सवाल- हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैह वसल्लम मक्का शरीफ में किस तरफ़ रूख़ करके नमाज़ पढ़ते थे?

*जवाब- मेराज से पहले अपने कश्फ़ से ख़ान-ए-काबा की तरफ़ रूख़ करके पढ़ते थे और मेराज के बाद जब तक मक्के में क्याम रहा बैतुल मुकद्दर की तरफ़ रूख करके इस तरह पढ़ते कि ख़ान-ए-काबा भी सामने होता*

📔(तफ़सीर अज़ीज़ी सूरऐ बक़र सफ़्हा 433
📔ज़रक़ानी जिल्द 1 सफ़्हा 402)

सवाल- क्या नबी की इब्तेदा(पीछे)में नमाज़ पढ़ने से गुनाह कबीरा भी माफ़ हो जाते है?

*जवाब- नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम के पीछे नमाज़ पढ़ने से गुनाह कबीरा माफ़ हो जाता है।*

📔(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 279)

सवाल- वह कौनसी नमाज़ है कि आदमी नमाज़ से निकल जाऐ और बात चीत भी करे फिर भी नमाज़ बातिल नहीं होती है?

*जवाब- वह नमाज़ है कि नमाज़ी रसूल की पुकार का जवाब दे हाज़िर बारगाह होकर बात-चीत करे और हुक्म भी बजा लाऐ फिर भी नमाज़ बातिल नहीं होती।*

📔(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 414
📔उम्दतुल कारी जिल्द 3 सफ़्हा 716)

सवाल- वह कौनसी नमाज़ है जिसमें इमाम के बाई तरफ़ खड़े होने में ज़्यादा फ़ज़ीलत है?

*जवाब- जो नमाज़ मस्जिदे नब्वी में अदा की जाऐ कि वहाँ इमाम के बाई तरफ खड़े होने में ज्यादा फ़ज़ीलत है कि आपका रौज़ऐ अक़दस बाई जानिब है।*

📔(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 476)

सवाल- क्या यह सही है कि अंम्बियाऐ किराम अपनी-अपनी कब्रों में नमाज़ पढ़ते है?

*जवाब- हाँ सभी अंम्बियाऐ किराम पढ़ते है।*

📔(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 420)

सवाल- क्या वह नमाज़ अज़ान व इक़ामत के साथ होती है?

*जवाब- हाँ अज़ान व इक़ामत के साथ होती है यहाँ तक कि बाज सहाबए किराम ने नमाज़ के वक़्त रोजऐ अकदस से अज़ान व इक़ामत की आवाजें भी सुनी हैं।*

📔(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 420)

सवाल- शबे मेराज बैतुल मुकद्दर में हुजूर अकरम सल्लल्लाहु-तआला-अलैह-वसल्लम ने अंम्बियाऐ किराम को कितनी रकात नमाज़ पढ़ाई?

*जवाब- दो रकात।*

📔(मुस्लिम शरीफ जिल्द 1 सफ़्हा 91)

सवाल- उसमें कितनी सफ़ें थी?*

*जवाब- सात सफ़ें थीं तीन में रसूलाने इज़ाम और चार सफ़ों में बाक़ी अंम्बियाऐ किराम थे नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम की पीठ के क़रीब हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम खड़े थे और दाहनी तरफ हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम और बाई तरफ हज़रत इसहाक अलैहिस्सलाम फिर हजरत मूसा अलैहिस्सलाम फिर तमाम अंम्बियाऐ किराम व रसूलाने इज़ाम।*

📔(तफ़सीर जुमल जिल्द 4 सफ़्हा 88)

सवाल- दुनिया की वह कौनसी जगह है जहाँ नमाज़ पढ़ने का सवाब सबसे ज्यादा है?

*जवाब- मस्जिदे हराम है हदीस शरीफ में है कि मस्जिदे हराम में एक नमाज दूसरी मस्जिदों की लाख़ नमाजों से अफ़ज़ल है।*

📔(जज़बुल कुबूल सफ़्हा 19)

सवाल- क्या इसके इलावा भी कोई ऐसी जगह है जहाँ नमाज़ पढ़ना मस्जिदे हराम में नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल हो?

*जवाब- हाँ अय्यामें मिना में मिना के अन्दर अरफे के दिन में अरफ़ात के अन्दर मुज़दलफे की रात में मुज़दलफे के अन्दर नमाज़ पढ़ना मस्जिदे हराम में नमाज़ पढ़ने से अफ़ज़ल है।*

📔(जज़बुल कुबूल सफ़्हा 19/
📔फ़तावा हदीसिया सफ़्हा 79)

सवाल- क्या तहज्जुद की नमाज़ पहले सब पर फ़र्ज थी?

*जवाब- हाँ सब पर फ़र्ज़ थी बाद में उम्मत से उसकी फ़रज़ियत मन्सूख हो गई और नबी-ए-करीम सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम पर आख़िर उम्र तक फ़र्ज़ रही।*

📔(अशिअअतुल लमआत जिल्द 1 सफ़्हा 506)

सवाल- किसी नमाज़ में दो रकात किसी में तीन किसी में चार फ़र्ज़ होने कि क्या हिकमत है?

*जवाब- उसकी पूरी हिकमत तो अल्लाह तआला जाने अल्बत्ता बाज़ रिवायत में आता है कि हुजूरे अनवर सल्ललाहो तआला अलैह वसल्लम ने मेराज की रात बाज़ फ़रिश्तों को देखा कि बाज़ दों पर(परों) बाज़ के तीन पर और बाज़ के चार पर वाले है तो अल्लाह तआला ने उनकी हैरत को नमाज़ की शक़्ल में ज़ाहिर फरमा दिया ताकि नमाज़ी भी उनके ज़रीऐ फ़रिश्तों की तरह हो जाऐ और बुलन्द दरजों की तरफ़ परवाज़ करके अल्लाह का कुर्ब हासिल करें।*

📔(रूहुल बयान जिल्द 1 सफ़्हा 24)

सवाल- क्या पहले नबियों की उम्मत पर भी जुमा फ़र्ज़ था?

*जवाब- नहीं जुमे की फ़रज़ियत इस उम्मत के साथ ख़ास है।*

📔(मवाहिब लदुन्निया जिल्द 1 सफ़्हा 428)

सवाल- क्या कुछ सहाबा किराम जुमा फ़र्ज होने से पहले भी जुमा पढ़ते थे?

*जवाब- हाँ जैसे हज़रत असअद बिन जरारह वगैरह अन्सार एहले मदीना रदियल्लाहु तआला अन्हुम का जुमा फ़र्ज होने से पहले जुमा पढ़ना साबित है।*

📔(फ़तावा रिज़विया जिल्द 4 सफ़्हा 39)

सवाल- किन लोगों के लिये जमाअत में ताख़ीर करना जाइज़ है?

*जवाब- इमामे मुअय्यन,आलिमे दीन,हाकिमे इस्लाम, पाबन्दे जमाअत,अगर बाज़ वक़्त उज़्र की की वज़ह से ताख़ीर हो जाऐ,सर बर आवुरदह शर पसन्द जिसका इन्तेज़ाम न करने से तक़लीफ पहुँच ने का खौफ़ हो।*

📔(फ़तावा रिज़विया जिल्द 2 सफ़्हा 433)

सवाल- सज्दा-ऐ-मशरूआ की कितनी किस्में है?

*जवाब- चार किस्में हैं,(1)सज्दा-ऐ-नमाज़,(2)सज्दा-ऐ-तिलावत,(3)सज्दा-ऐ-शुक्र,(4)सज्दा-ऐ-सहू।*

📔(अलमलफूज जिल्द 1 सफ़्हा 89)

सवाल- कौनसा सज्दा हराम और कौनसा सज्दा कुफ्र है?

*जवाब- सज्दा-ऐ-इबादत गैरे खुदा के लिये कुफ्र है और सज्दा-ऐ-ताज़ीमी हराम व गुनाहे कबीरा है।*

📔(फ़तावा रिज़विया जिल्द 12 सफ़्हा 292)
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