यौमे शहादत हज़रत उमरे फ़ारूक़
ज़रूर पढ़े इस्लाम के दूसरे खलीफा हज़रते उम्र फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु की ज़िन्दगी....ये है वो जिनके इस्लाम क़ुबूल करने पर फरिश्ते मुबारक बाद दे रहे थे,,,,,,,,,,,,,
हज़रत उमर फारुख (रजि यल्लाहू अन्हु) ने कुरआन शरीफ की आयत सुन कर इस्लाम कुबूल किया और ऐसा कुबूल किया की हमारे आका(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने आपके बारे में फ़रमाया की - अगर नुबुअत का दरवाज़ा बंद ना हुआ होता तो मेरे बाद अगर कोई नबी होते तो उमर होते(सुब्हानल्लाह)
आप तीर और तलवार लेकर एलानिया हिजरत करने वाले सहाबी-ए-रसूल थे
आपके वालिद का नाम ख़त्ताब बिन नुफैल व वालिदा का नाम हन्तिमा था
आपके अहेद में बीस रकात तरावीह बजमात शुरू हुई।
आपकी शहादत हालाते नमाज़े फजर में हुई
आप रौजा-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक के पहलु में दफ्न हुए जिसकी इज़ाज़त हज़रत आइशा सिद्दीक ने दी।
आपकी 63 साल कि उम्र हुई।
आपके अहदे में 4 हज़ार मस्जिदे नमाज़े पंचगाना के लिए और 9 जामा मस्जिदे तामीर हुई।
बैतुल्माल आप ने कायम फ़रमाया।
सबसे पहले आपने शराबी की सज़ा हद जारी की।
आपसे लगभग 539 हदीसे मरवी है।
हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपको फारुखे आज़म का ख़िताब अता फ़रमाया है।
आपने सबसे पहले एलानिया खाना-ए-काबा में नमाज़ पढ़ी।
आपने ही रौजा-ए-रसूल बनाया।
आप ने आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फैसले को तस्लीम ना करने वाले बिशर नामी मुनाफ़िक का सर कलम फ़रमाया था।
फज्र की अज़ान में अस्सलातो खैरुम्मिनन्नौम का इज़ाफ़ा आप की ही ख्वाहिश पर हुआ था।
नमाज़ के लिए अज़ान का मशवरा सबसे पहले आप ने ही पेश की।
आप ऐसे सहाबी गुजरे जो खलीफा होते हुए भी फटा हुआ कुर्ता और फटा हुआ अमामा इस्तेमाल फरमाते थे।बैतूल मुक़द्दस में दाखिले के वक़्त आपके कुर्ते में 14 पेवंद लगे थे।
आपने आधी दुनिया में बादशाही की।
आप हज़रत फरुखे आज़म रात में भेस बदल कर आपनी रिआया के हालात मालूम किया करते थे।(सुब्हानाल्लाह)
आप इतने ताकतवर,बहादुर सहाबी थे की शैतान भी आपसे दूर भागता ,
आप जिस रास्ते से गुजरते शैतान उस रस्ते से भाग जाता।
सुब्हानल्लाह............
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_____________________________________________
( Farooq E Azam par Razi Allah Tala anhu katilana Hamla )
'एक बार मुगीरा बिन शुअबा रादिअल्लाहुअन्हु
ने एक गुलाम अबू लुअलुअ के बारे में
Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu को बताया जो कई हुनर जानता था, आप ने उसे मदीनए
मुनव्वरा में दाखिल होने की इजाजत दे दी । मुगीरा बिन शुअबा रादिअल्लाहुअन्हु उस से माहाना
सौ (100) दिरहम लिया करते थे । उस ने बारगाहे फारूके आ'जम में हाजिर हो कर शिकायत की तो आप
ने उस से पूछा :
“तुम क्या काम करते हो?" उस ने कहा :
““चक्कियां बनाता हूं '”
फरमाया :
“अपने मालिक के मुआमले में से डरो ।
” बा'जू रिवायात में यूं है कि आप ने फ्रमाया :
“येह चार (4) दिरहम तुम्हारे लिये जियादा नहीं हैं क्यूंकि इस अलाके में तुम ही चक्कियां बनाना जानते हो,
तुम्हारे इलावा येह काम कोई नहीं जानता ।”
Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu का येही इरादा था
कि बा'द में मुगीरा बिन शुअबा रादिअल्लाहुअन्हु को उस के मुआमले में तख़्फ़ीफू करने का
फरमाएंगे लेकिन उसे येह बात सख्त ना गवार गुजरी और उस ने आप से इन्तिकाम लेने का सोच लिया ।
'एक रिवायत में यूं है कि Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu
ने उसे अपने लिये चक्की बनाने का
'फृरमाया तो उस ने मुंह बिगाड़ते हुवे कहा :
“मैं तुम्हारे लिये ऐसी चक्की बनाऊंगा जिसे हमेशा लोग
याद रखेंगे ।”
येह कह कर वोह चला गया । Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu ने अपने अस्हाब से
फृरमाया : “इस गुलाम ने मुझे अभी धमकी दी है ।”
बहर हाल अबू लुअलुअ ने वहां से जाने के बा'द
एक दो (2) मुंह और तेजू धार वाला खन्जर तय्यार किया, फिर उसे जहर आलुद कर के रख लिया ।
बा'जू रिवायात में यूं है कि स्यिदुना फारूके आ'जूम अपने घर से जब नमाजे
'Fazar के लिये निकलते तो सदाए मदीना लगाते हुवे निकलते या'नी रास्ते में लोगों को नमाज के लिये
जगाते हुवे आते, अबू लुअलुअ रास्ते में ही छुपा हुवा था और उस ने मौकअ देख कर आप पर खुन्जर के तीन कातिलाना वार कर दिये जो मोहलिक साबित हुवे ।
जब कि बा'ज् रिवायात में यूं है कि
Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu की आदते मुबारका थी कि नमाज शुरूअ करने से पहले
'ए'लान फ्रमाते : “या'नी अपनी सफें सीधी कर लो ।” फिर नमाज शुरूअ करते ।
अबू लुअलुअ भी सफ में मौजूद था, जैसे ही Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu ने नमाज शुरूअ
की तो उस ने आप पर उस खन्जर से हम्ला किया और तीन (3) शदीद वार लगाए। आप जुख़मी हालत
में नीचे तशरीफ् ले आए ।'
कातिल ने भी खुद खुशी कर ली
अबू लुअलुअ आप को जख्मी कर के भाग खड़ा हुवा, आप : ने फ्रमाया : “उस
कुत्ते को पकड़ो, उस ने मुझे कृत्ल कर दिया है ।” पूरी मस्जिद में शोर बर्पा हो गया, लोग उस के पीछे
भागे तो उस ने तकरीबन बारह अफराद को जख्मी कर दिया, जिन में से छे (6) अफृराद बा'द में शहीद
हो गए, एक साहिब ने उस पर कपड़ा डाल कर उसे दबोच लिया । जब उसे यकीन हो गया कि अब मैं
फिरार नहीं हो सकता तो उस ने उसी खन्जर से अपने आप को कत्ल कर दिया”?
अमीर की इताअत में ही बेहतरी है
हजुरते अब्दुल्लाह बिन उमर
से रिवायत है कि अमीरुल मोमिनीन
हजरते Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu ने तमाम हुक्मरानों को हुक्म दे दिया था कि “हमारे
पास मायूस कुन अजमी काफिरों को न लाया करो ।'” जब अबू लुअलुअ ने आप को जख्मी
'कर दिया तो आप ने पूछा : “येह कौन है ?'' बताया गया कि सथ्यिदुना मुगीरा बिन शुअबा
का गुलाम अबू लुअलुअ है । फरमाया : “यानी मैंन
कहता था कि गुलामों को हमारे पास न लाया करो, लेकिन अफसोस तुम लोग मुझ
पर गालिब आ गए।””
मा'लूम हुवा कि अपने हाकिम की इताअत ही में भलाई है,
जब कि उस का हुक्म शरीअत के मुताबिक हो, बिला वज्हे शरई फकत जाती व नफ्सानी ख़्वाहिशात है
REFERENCE ⤵
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ज़रूर पढ़े इस्लाम के दूसरे खलीफा हज़रते उम्र फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु की ज़िन्दगी....ये है वो जिनके इस्लाम क़ुबूल करने पर फरिश्ते मुबारक बाद दे रहे थे,,,,,,,,,,,,,
हज़रत उमर फारुख (रजि यल्लाहू अन्हु) ने कुरआन शरीफ की आयत सुन कर इस्लाम कुबूल किया और ऐसा कुबूल किया की हमारे आका(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने आपके बारे में फ़रमाया की - अगर नुबुअत का दरवाज़ा बंद ना हुआ होता तो मेरे बाद अगर कोई नबी होते तो उमर होते(सुब्हानल्लाह)
आप तीर और तलवार लेकर एलानिया हिजरत करने वाले सहाबी-ए-रसूल थे
आपके वालिद का नाम ख़त्ताब बिन नुफैल व वालिदा का नाम हन्तिमा था
आपके अहेद में बीस रकात तरावीह बजमात शुरू हुई।
आपकी शहादत हालाते नमाज़े फजर में हुई
आप रौजा-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में हज़रत अबू बक्र सिद्दीक के पहलु में दफ्न हुए जिसकी इज़ाज़त हज़रत आइशा सिद्दीक ने दी।
आपकी 63 साल कि उम्र हुई।
आपके अहदे में 4 हज़ार मस्जिदे नमाज़े पंचगाना के लिए और 9 जामा मस्जिदे तामीर हुई।
बैतुल्माल आप ने कायम फ़रमाया।
सबसे पहले आपने शराबी की सज़ा हद जारी की।
आपसे लगभग 539 हदीसे मरवी है।
हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपको फारुखे आज़म का ख़िताब अता फ़रमाया है।
आपने सबसे पहले एलानिया खाना-ए-काबा में नमाज़ पढ़ी।
आपने ही रौजा-ए-रसूल बनाया।
आप ने आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फैसले को तस्लीम ना करने वाले बिशर नामी मुनाफ़िक का सर कलम फ़रमाया था।
फज्र की अज़ान में अस्सलातो खैरुम्मिनन्नौम का इज़ाफ़ा आप की ही ख्वाहिश पर हुआ था।
नमाज़ के लिए अज़ान का मशवरा सबसे पहले आप ने ही पेश की।
आप ऐसे सहाबी गुजरे जो खलीफा होते हुए भी फटा हुआ कुर्ता और फटा हुआ अमामा इस्तेमाल फरमाते थे।बैतूल मुक़द्दस में दाखिले के वक़्त आपके कुर्ते में 14 पेवंद लगे थे।
आपने आधी दुनिया में बादशाही की।
आप हज़रत फरुखे आज़म रात में भेस बदल कर आपनी रिआया के हालात मालूम किया करते थे।(सुब्हानाल्लाह)
आप इतने ताकतवर,बहादुर सहाबी थे की शैतान भी आपसे दूर भागता ,
आप जिस रास्ते से गुजरते शैतान उस रस्ते से भाग जाता।
सुब्हानल्लाह............
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( Farooq E Azam par Razi Allah Tala anhu katilana Hamla )
'एक बार मुगीरा बिन शुअबा रादिअल्लाहुअन्हु
ने एक गुलाम अबू लुअलुअ के बारे में
Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu को बताया जो कई हुनर जानता था, आप ने उसे मदीनए
मुनव्वरा में दाखिल होने की इजाजत दे दी । मुगीरा बिन शुअबा रादिअल्लाहुअन्हु उस से माहाना
सौ (100) दिरहम लिया करते थे । उस ने बारगाहे फारूके आ'जम में हाजिर हो कर शिकायत की तो आप
ने उस से पूछा :
“तुम क्या काम करते हो?" उस ने कहा :
““चक्कियां बनाता हूं '”
फरमाया :
“अपने मालिक के मुआमले में से डरो ।
” बा'जू रिवायात में यूं है कि आप ने फ्रमाया :
“येह चार (4) दिरहम तुम्हारे लिये जियादा नहीं हैं क्यूंकि इस अलाके में तुम ही चक्कियां बनाना जानते हो,
तुम्हारे इलावा येह काम कोई नहीं जानता ।”
Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu का येही इरादा था
कि बा'द में मुगीरा बिन शुअबा रादिअल्लाहुअन्हु को उस के मुआमले में तख़्फ़ीफू करने का
फरमाएंगे लेकिन उसे येह बात सख्त ना गवार गुजरी और उस ने आप से इन्तिकाम लेने का सोच लिया ।
'एक रिवायत में यूं है कि Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu
ने उसे अपने लिये चक्की बनाने का
'फृरमाया तो उस ने मुंह बिगाड़ते हुवे कहा :
“मैं तुम्हारे लिये ऐसी चक्की बनाऊंगा जिसे हमेशा लोग
याद रखेंगे ।”
येह कह कर वोह चला गया । Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu ने अपने अस्हाब से
फृरमाया : “इस गुलाम ने मुझे अभी धमकी दी है ।”
बहर हाल अबू लुअलुअ ने वहां से जाने के बा'द
एक दो (2) मुंह और तेजू धार वाला खन्जर तय्यार किया, फिर उसे जहर आलुद कर के रख लिया ।
बा'जू रिवायात में यूं है कि स्यिदुना फारूके आ'जूम अपने घर से जब नमाजे
'Fazar के लिये निकलते तो सदाए मदीना लगाते हुवे निकलते या'नी रास्ते में लोगों को नमाज के लिये
जगाते हुवे आते, अबू लुअलुअ रास्ते में ही छुपा हुवा था और उस ने मौकअ देख कर आप पर खुन्जर के तीन कातिलाना वार कर दिये जो मोहलिक साबित हुवे ।
जब कि बा'ज् रिवायात में यूं है कि
Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu की आदते मुबारका थी कि नमाज शुरूअ करने से पहले
'ए'लान फ्रमाते : “या'नी अपनी सफें सीधी कर लो ।” फिर नमाज शुरूअ करते ।
अबू लुअलुअ भी सफ में मौजूद था, जैसे ही Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu ने नमाज शुरूअ
की तो उस ने आप पर उस खन्जर से हम्ला किया और तीन (3) शदीद वार लगाए। आप जुख़मी हालत
में नीचे तशरीफ् ले आए ।'
कातिल ने भी खुद खुशी कर ली
अबू लुअलुअ आप को जख्मी कर के भाग खड़ा हुवा, आप : ने फ्रमाया : “उस
कुत्ते को पकड़ो, उस ने मुझे कृत्ल कर दिया है ।” पूरी मस्जिद में शोर बर्पा हो गया, लोग उस के पीछे
भागे तो उस ने तकरीबन बारह अफराद को जख्मी कर दिया, जिन में से छे (6) अफृराद बा'द में शहीद
हो गए, एक साहिब ने उस पर कपड़ा डाल कर उसे दबोच लिया । जब उसे यकीन हो गया कि अब मैं
फिरार नहीं हो सकता तो उस ने उसी खन्जर से अपने आप को कत्ल कर दिया”?
अमीर की इताअत में ही बेहतरी है
हजुरते अब्दुल्लाह बिन उमर
से रिवायत है कि अमीरुल मोमिनीन
हजरते Farooq E Azam RaziAllahTalaanhu ने तमाम हुक्मरानों को हुक्म दे दिया था कि “हमारे
पास मायूस कुन अजमी काफिरों को न लाया करो ।'” जब अबू लुअलुअ ने आप को जख्मी
'कर दिया तो आप ने पूछा : “येह कौन है ?'' बताया गया कि सथ्यिदुना मुगीरा बिन शुअबा
का गुलाम अबू लुअलुअ है । फरमाया : “यानी मैंन
कहता था कि गुलामों को हमारे पास न लाया करो, लेकिन अफसोस तुम लोग मुझ
पर गालिब आ गए।””
मा'लूम हुवा कि अपने हाकिम की इताअत ही में भलाई है,
जब कि उस का हुक्म शरीअत के मुताबिक हो, बिला वज्हे शरई फकत जाती व नफ्सानी ख़्वाहिशात है
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