:::::::मोहब्बत-ए-रसूल::::::: :::सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम:::

:::::::मोहब्बत-ए-रसूल:::::::

:::सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम:::

[सही अहादीस की रोशनी मे]

1. जिस ने मुझ से मोहब्बत की उस ने अल्लाह से मोहब्बत की ।

[हाकिम: 3/130]

2. जिस ने मुझ से मोहब्बत की वह जन्नत मे मेरे साथ होगा ।

[इब्न असाकिर: 3/145]

3. अल्लाह की मोहब्बत की ख़ातीर मुझ से मोहब्बत करो ।

[तिर्मिज़ी: 3722]

4. तुम मे से कोई भी उस वक़्त तक मोमीन नही हो सकता जब तक मैं उस के
नज़दीक उस की अपनी जान से भी ज़्यादा महबुब न हो जाओ ।

[अहमद: 18047]

5. तुम मे से कोई भी उस वक़्त तक मोमीन नही हो सकता,जब तक मैं उस के
नज़दीक उस के वालदैन, उस की औलाद और तमाम लोगों से ज़्यादा महबुब न हो
जाओ ।

[बुखारी: 15]

6. कोई बन्दा उस वक़्त तक मोमीन नही होता जब तक उस को मेरी मोहब्बत उस के
घर वालों, माल व दौलत और सब लोगों से ज़्यादा न हो ।

[मुस्लिम: 168]

7. आदमी [क़यामत के दिन] उसी के साथ होगा जिस से उस ने [दुनिया मे]
मोहब्बत की होगी ।

[मुस्लिम: 6710]

ऐ अल्लाह! जान से ज़्यादा मोहब्बत-ए-रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अता फ़रमा । आमीन..

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